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फ्रेंच सिखानेवाले भारतीयों को फ्रेंच सिखाने के विषय में
पाठ्य पुस्तक की खोज
(एक जवान भारतीय अध्यापिका के लिये पाठ्य- पुस्तक चुमने की बात थी
२९५ वह अपनी फेंच सुधारना चाहती थी फ्रेंच अध्यापिका ने माताजी से आल्बैर काम्य की पुस्तक 'धा पेस्त' के बारे मे उनकी राय पूछी [''पेस्त' ' का मतलब है हानिकर कीड़े-मकोड़े])
घूरोपवासियो के लिये अमुक चीजें पढ़ना हितकर हो सकता है, उनकी चमड़ी काफी सख्त होती है, ताकि हैं अपने अंदर सच्ची करुणा की भावना को जगा सकें; लेकिन यहां भारत मे यह आवश्यक नहीं हैं । और ऐसे जीवन के चित्र को अंधकारपूर्ण बनाना ठीक नहीं जो पहले से हीं अपने-आपमें काफी अंधकारपूर्ण हैं ।
(माताजी ज्यूल रोमैं की पुस्तक 'रशैर्श धून गलीज' [गिरजाघर की खोज मे) की ओर इशारा करती हैं और अपनी प्रति फ्रेंच अध्यापिका को भेजती हैं ताकि वह उसके बारे मे जानकारी प्रान्त कर्कर सके! अध्यापिका को किताब के कुछ अध्याय पढ़कर ''धक्का' ' तगड़ा है और वह माताजी के सामने काफी कठोर शब्दों मे अपना भाव प्रकट करती हे माताजी उत्तर देती हैं:)
'रशैर्श जून एग्लीज' मेरी रुचि की पुस्तक है । ज्यूल रोमैं महान लेखक हैं और उनकी फ्रेंच पहले दर्जे की हैं । अगर मैंने कुछ हिस्सों को न पढ़ने की बात की थी ' तो यह इसलिये कि कुछ हिस्से जवान लहूकी के दिमाग के लिये उचित नहीं हैं । लेकिन काट-छांट करना आसान ३ और बाकी हिस्सा बहुत अच्छा है ।
(फ्रेंच अध्यापिका पुस्तक को पढ़ना जारी रखती है और मर्क ल्छापैं की पुस्तक 'ला फांस ' [आज का फांस ] का सुझाव देती है !)
मैंने अभी रस लेकर पुस्तक देखी । इस बार, बहुत अच्छी लगी ।
(मई १९६०)
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काम के कार्यक्रम की खोज
(फ्रेंच अध्यापिका अपने एक युवा भारतीय विद्यार्थी के लिये सम्यताओं के इतिहास अध्ययन की योजना आरंभ करती है ? वह इसे माताजी के आगे प्रस्तुत करती हैं! )
१पहले की एक चिट्ठी में माताजी ने लिखा था : '' थोडी-बहुत काट-छांट के साथ ज्यूल सेमों की कुछ पुस्तकें अच्छी होगी, विशेष रूप से 'रशैर्श खून एग्लीज' ।'')
काम वास्तव में मजेदार हो सकता हैं, लेकिन तभी जब वह श्रीअरविन्द की पुस्तक 'मानव चक्र '' पर आधारित हो (वह 'बुलेटिन' में छप चुकी है) । क्योंकि इस पुस्तक में मानव क्रमविकास की सारी समस्याएं केवल प्रस्तुत हीं नहीं की गयीं, बल्कि हल भी की गयी हैं । जब कभी श्रीअरविन्द किसी सभ्यता या देश की बात करते हैं, तो मेल खानेवाले ऐतिहासिक तथ्यों का अध्ययन किया जा सकता है, और यह सचमुच मजेदार काम होगा ।
(सितम्बर १९६०)
भारतीय अध्यापकों के लिये जो फ्रेंच कक्षा चत्हती है उसमें बहुत-से लोग समकात्हीन लेखकों की रचनाएं पढ़ना चहते हैं क्योंकि पुरानी रचनाओं की अपेक्षा हूनकी भाषा ज्यादा आट्टनिक होती है माताजी की क्या राय है?
मै आधुनिक लेखकों के बारे मे जितना जानती हूं उसने मेरी अधिक पढ़ने की इच्छा को खतम कर दिया हैं ।
क्यों जानबूझकर कीचड़ मे प्रवेश किया जाये? उससे तुम्हें क्या लाभ हो सकता है? यह ज्ञान कि पक्षिमी जगत् कीचड़ मे लोट रहा हैं? इसकी कोई जरूरत नहीं । लगता हैं कि चुने हुए, अच्छी तरह चुने हुए भाग ही समाधान हैं ।
(मई १९६३)
(एक युवा अध्यापक के विषय में जिसे तेजी सै फ्रेंच सिखनी थीं और साथ हीं स्कूल में काफी व्यस्त कार्यक्रम का भी पालन करना था !
मैं पूरी तरह सहमत हूं । 'क' को भली-भांति फ्रेंच सीखने के लिये समय मिलना चाहिये और उसके काम करने और पढ़ाने के घंटों को इस तरह व्यवस्थित करना चाहिये कि उसे तुम्हारे साथ पाठ जारी रखने का समय मिले, यह तबतक चले जबतक कि उसे यह न लगे कि अब उसके लिये और पढ़ना आवश्यक नहीं रहा ।
(सितम्बर १९६६)
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